स्वास्थ्य-चिकित्सा >> आरोग्य प्रकाश आरोग्य प्रकाशरामनारायण शर्मा
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निरोग रहने के नियम, रोगों के निदान तथा चिकित्सा की सर्वोत्तम व्यवहारिक पुस्तक।
Aarogya Prakash - A Hindi Book by - Ram Narayan Sharma आरोग्य प्रकाश - रामनारायण शर्मा
प्रस्तावना
श्री रामनारायण शर्मा वैद्य द्वारा लिखित ‘आरोग्य-प्रकाश’ का स्वास्थ्य प्रकरण, मेरे विचार से बहुत उपयोगी पुस्तक है। उन्होंने स्वास्थ्य-रक्षा पर और युक्ताहार-विहार के द्वारा रोगों से मुक्त रहने के मूल सिद्धान्तों का सुबोध विवेचन किया है। बड़ी मेहनत से उन्होंने आयुर्वेद के शास्त्रों से स्वास्थ्य का महत्त्व बताने वाले आरोग्य-प्राप्ति के साधन-सूचक श्लोक अपनी पुस्तक में दिये हैं और आधुनिक आहार-विज्ञान का अभ्यास करके अनेक खाद्य-पदार्थों की व्याख्या भी की है। साथ ही यह भी बताया है कि किस-किस खाने की वस्तु में से क्या-क्या पौष्टिक पदार्थ प्राप्त हो सकते हैं। शरीर-निर्माण और शरीर की मशीन को तन्दुरुस्त रखने के लिये प्रोटीन की आवश्यकता पर भी उन्होंने जोर दिया है और बताया है कि प्रोटीन दाल-सब्जी इत्यादि में से तो प्राप्त होते ही हैं, मगर अमुक मात्रा में इनके अलावा दूध, घी अथवा मांस-मछली और अण्डे इत्यादि से लेनी आवश्यक होती है। एक अण्डा एक पाव दूध के बराबर गुणकारी होता है-ऐसा उन्होंने बताया है। सब्जी, फल आदि की आवश्यकता-अंकुरित चने, मूँग इत्यादि में से पौष्टिक तत्त्व प्राप्ति का महत्त्व, खाना सही प्रकार से तैयार करना ताकि पौष्टिक पदार्थ खो न जायें-इन सभी प्रश्नों के बारे में उन्होंने आवश्यक सलाह-मश्वरा दिया है। नशीली वस्तुओं से क्या नुकसान होता है यह भी उन्होंने समझाया है। आहार, निद्रा, ब्रह्मचर्य और संयम का स्वास्थ्य-रक्षा के साथ कितना निकट का संबंध है, इसका उन्होंने विशेष वर्णन किया है। साथ ही व्यायाम के कुछ तरीके भी बताये हैं। स्वास्थ्य के लिये शरीर, घर की और गली-मुहल्ले की सफाई कितनी आवश्यक है-इस पर भी अपनी पुस्तक में उन्होंने पर्याप्त ध्यान दिया है। स्वास्थ्य के लिये सदाचार पर विशेष बल देते हुये उन्होंने दिनचर्या, रात्रिचर्या और ऋतुचर्या का भी विवेचन किया है। स्री-स्वास्थ्य के साधनों पर भी पुस्तक में पर्याप्त प्रकाश डाला गया है।
दो-चार बातें उनकी मेरी समझ में नहीं आई। उन्होंने कहा कि विषय-भोगी पुरुष शूर-वीर नहीं हो सकता, वह व्यापारी हो सकता है, धनी हो सकता है, किसी हद तक ईमानदार हो सकता है, त्यागी हो सकता है। मैं समझती हूँ कि विषय-भोगी पुरुष त्यागी नहीं हो सकता और ईमानदारी का पालन करना भी उसके लिये अत्यन्त कठिन होता है। इसी प्रकार उन्होंने लिखा है कि तेज-भूख और विषयेच्छा के वेग को रोकना स्वास्थ्य
के लिये अच्छा नहीं है। मैं समझती हूँ उनका विचार उन्होंने दूसरी जगह पर जहाँ संयम पर जोर दिया है, उसके साथ मेल नहीं खाता। ब्रह्मचर्य पालन के लिये उन्होंने लड़के-लड़कियों को साथ-साथ न पढ़ाने की सलाह दी है। मैं समझती हूँ कि जो लड़के-लड़कियाँ बचपन से साथ-साथ पढ़ते हों और शिक्षक उनका सही मार्ग-दर्शन करते हों, वे एक-दूसरे के प्रति सही व्यवहार सही तरीके से पालन कर सकते हैं। उनके गलत रास्ते पर चलने की संभावना कम होती है। सफाई के अध्याय में श्री रामनारायण जी ने लिखा है कि पाखाना करने के लिए सदा ही खुले मैदान में जाना अच्छा होता है। यह बात पुराने जमाने में, जब जनसंख्या कम और जमीन बहुत थी, शायद चल भी सकती थी मगर आज तो उसमें उल्टे नुकसान होता है। पंजाब और कई दूसरे प्रान्तों में खेतों में पाखाना जाने के कारण लगभग ४० प्रतिशत लोग हुक-वर्म के रोग से पीड़ित होते हैं। अच्छा तो यह है कि खुले मैदान में न जाय लेकिन यदि ऐसा करना ही पड़े तो पाखाना जानेवाला व्यक्ति अपने साथ एक खूर्पी रखे और खोद कर सूखी मिट्टी से मैले को ढक दें। श्री रामनारायणजी ने भी अपनी इस पुस्तक में अन्यत्र लिखा है कि खुले खेतों में चाहे-जहाँ मल त्याग करने की आदत अच्छी नहीं। ग्रामों में बापू द्वारा बताई सफाई शौच व्यवस्था को वैद्यजी ने उपयोगी माना है। इसी प्रकार उन्होंने लिखा है कि बीच-बीच में एनिमा लेकर आँतों को साफ करते रहना चाहिए। मैं इसे बहुत उपयोगी नहीं समझती। बिना जरूरत के नियमित रूप से एनिमा लेते रहने से आँतें कमजोर पड़ सकती हैं। बीमारी में लेना अलग बात है, मगर एनिमा अस्वाभाविक है। स्वयं वैद्यजी ने भी एनिमा लेने का परामर्श खुश्की और कोष्ठबद्धत्ता से पीड़ित लोगों के लिये दिया है। स्वस्थ मनुष्य को इसकी आवश्यकता नहीं होनी चाहिये। इसी प्रकार हाईड्रोजन-पर-आक्साइड ऐसे ही कानों में नहीं डालते रहना चाहिये। खास आवश्यकता होने पर सलाह दें तभी इसका इस्तेमाल करना चाहिये। नहाने में साबुन का उपयोग नहीं करना ही अच्छा है क्योंकि उससे त्वचा की स्वाभाविक स्रिग्धता नष्ट हो जाती है, ऐसा इस पुस्तक में कहा गया है, मगर उसके स्थान पर क्या उपयोग हो सकता है, यह नहीं बताया। हर रोज नहीं तो दूसरे-चौथे दिन साबुन या किसी दूसरी ऐसी चीज से नहाना आवश्यक होता ही है जिससे शरीर साफ रह सके और चमड़ी के रोगों से व्यक्ति मुक्त रहे। घर की सफाई का जिक्र करते हुये वैद्य जी ने घर का कूड़ा-कर्कट गली-मुहल्ले में न डालने की सलाह दी है। यह अच्छी बात है। इसके लिये घर में कूड़े का एक बक्सा रहे तो अच्छा है। वैद्य जी ने भी लिखा है कि घर का कूड़ा-कर्कट और जूठन आदि डालने लिये घर में एक निर्यामत स्थान बनाना चाहिये जो ढका रखा जा सके। कूड़े के बक्से को उठा कर मुनासिब जगह फेंकना आसान रहता है। उन्होंने लिखा है कि वर्षा ऋतु में हरी सब्जियों का प्रयोग नहीं करना चाहिये। मैं समझती हूँ कि यदि उसे अच्छी तरह साफ कर लिया जाय और लाल दवा के पानी से धो लिया जाय, तो उसके प्रयोग में कोई नुकसान नहीं है। इसी प्रकार वे कहते हैं कि बरसात में नदी या तालाब का पानी नहीं पीना चाहिये। मैं समझती हूँ कि नदी तालाब का पानी कभी भी नहीं पीना चाहिये और यदि पीना आवश्यक हो, तो उबाल कर पियें। क्षय रोग के थूक को राख या चूने से ढक देना चाहिये-ऐसा वैद्यजी ने लिखा है। क्षय रोग के किटाणु कालरा के कीटाणुओं की तरह, आसानी से नहीं मरते। उनको समाप्त करने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि मरीज के थूक को तीन मिनट तक पानी में उबाल दिया जाय। मरीज एक छोटे-से सिगरेट के टीन या दूसरे बर्तन का थूकदान रखे उसमें पानी रहना चाहिए। सुबह-शाम जलते कोयलों पर रखकर उसे तीन मिनट तक उबाल लेना चाहिये। इसमें कोई भी विशेष खर्चा या मेहनत नहीं होती और हम कीटाणुओं से पूर्णतया सुरक्षित हो जाते हैं।
मैं समझती हूँ कि वैद्य श्री रामनारायणजी की यह पुस्तक हर एक को पढ़नी चाहिये। स्री और पुरुष सभी को इसमें से ज्ञान मिल सकता है। मेरी दृष्टि में यह पुस्तक विद्यार्थियों के लिये बहुत उपयोगी है। विद्यार्थी-जीवन से ही मनुष्य में स्वास्थ्य-रक्षा के संस्कार पड़ जावें, तो हमारी आगामी पीढ़ियों में आरोग्य-स्थापन में बड़ी सहायता हो सकती है। आशा है वैद्यजी की पुस्तक इस दिशा में उपयोगी सिद्ध होगी।
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